मुुुुठ्ठी में रेत की भांति फिसलते जा रहें हैं, लगता है हम बदल रहें हैं। मुुुुठ्ठी में रेत की भांति फिसलते जा रहें हैं, लगता है हम बदल रहें हैं।
कहां अभी स्वतंत्र हुए हम आजादी के इस दौर में। कहां अभी स्वतंत्र हुए हम आजादी के इस दौर में।
मौन चौक के पनघट देखे गगरी कलशा रहा नहीं। मौन चौक के पनघट देखे गगरी कलशा रहा नहीं।
रामायण का राम हूँ मैं युद्ध का परिणाम हूँ, रामायण का राम हूँ मैं युद्ध का परिणाम हूँ,
ऊंची ऊंची मिनारे सुना रही है बीती कहानियां, हमारी सभ्यता की महक से गुलशन है आज भी ये ऊंची ऊंची मिनारे सुना रही है बीती कहानियां, हमारी सभ्यता की महक से गुलशन है ...
वक़्त को ना पकड़ सका कोई वक़्त को ना थाम सका! वक़्त को ना पकड़ सका कोई वक़्त को ना थाम सका!